Saturday, April 8, 2017

न कोई रिश्तों को नाम दो...

न कोई रिश्तों को नाम दो
और न ही पालो अहसासों को
ज्यों ही बिखरता है वो रिश्ता
तड़फ उठता है दिल
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।

सब कुछ होते हुए भी
क्यों वह अनजानी सी कमी
खटकती रहती है हर पल
जिसको पाने की मृगतृष्णा में
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।

पर वाह री 'संतु'
तुम भूल रही हो इस बार
जो अहसास जन्म लेते है
उनका चले जाना भी शाश्वत है
और यही है तेरी दुनिया।

संतोष शर्मा 'संतु'

ऎसे ही सदियाँ बीत जायेगी.....

           

ऎसे ही सदियाँ बीत जायेगी
पर तुम यूँ ही
जवानी की दहलीज पर रहोगे
तुम्हारे अपने
बचपन, तरुण और जीवन की
अंतिम संध्या तक होंगे
पर तुम्हारा मुखमंडल हमेशा
तरुणाई के अठखेलियों से
देदीप्तयमान रहेगा।
समय तुम्हारे लिए
रुक चुका है
तुम्हारी उम्र ने तुम्हे
बाँध लिया है
कोई नहीं देख सकता
तुम्हारे चेहरे पड़ती झुर्रियां
क्योकि तुम तो खुद एक
वक्त बन चुके हो।
फिर भी एक इन्तजार है
शायद तुम भी
अपनो के साथ, अपनो की तरह
जीवन की राहों से गुजरोगे
और तुम्हे फिर कोइ वक्त
नहीं बाँध पायेगा....
           

संतोष शर्मा 'संतु'



मित्रता...

'मित्रता'
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!
जब 'जीवन' सफ़र में
कोई लगे 'अपना-सा'
कि,
जिसकी उपस्थिति मात्र ही
आप को देने लगे 'उर्जा'
कि,
कोई जब आपकी 'धड़कनों' में धड़क कर
आपके 'ह्रदय' के साथ होने लगे 'स्पंदित'
उस 'वक्त' आपका मन कहने लगता हैं
कि,
'मित्रता'
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!

हिंदी को साबित करना होगा...

मत मांगो अपनो से ही भीख
कि हिंदी का सम्मान करो
कि हिंदी में बोलो, पढ़ो और
काम करो....

हिंदी के लिए कुछ करना है
तो इसे इस काबिल बनाओ
कि स्वयं ही हमारी पहचान
हमें गौरान्वित करे...

इसे वक्त के साथ कदम से कदम
मिलाकर चलना होगा
इसमे हमें पंडिताई छोड़कर
दिल के तारो से जुड़ना होगा..

हम अपनी ही विद्वता को
साबित करने के लिए
एक दूसरे की कमियाँ निकालकर
पंडिताई को बंद करना होगा

बिन मांगे मोती मिले
माँगे मिले न भीख
हमें भीख नहीं भूख बनकर
लोगो में जागृत होना होगा..

                 संतोष शर्मा 'संतु'

नहीं कहूँगा...

कभी कभी लगता है व्यर्थ ही
कर रही हूँ अपने प्यार पर
अभिमान..
शायद ये सब किताबों में
ही होता है
मै पागल सब कुछ न्योछावर
करती रही
यहाँ तक कि "सब कुछ'
तुम्हारे आज के कुछ शब्द
गूंज रहे है मेरे कानो में
"नहीं कहूँगा'
अंदर तक लोहा पिघल गया
आदर्शो की बलि देना
मैंने भी कभी नहीं चाहा था
पर ये दुःख तो हम दोनों का
एक था..

क्यों नहीं हो तुम???

तुम्हारी बाँहो का वो मजबूत सहारा
फिर से याद आता है...
क्यों नहीं थे तुम? ये देखने के लिए
की तुम्हारा छोटू भी आज
स्कूल से विदा हो रहा है..
क्यों नहीं थे तुम उसे
बड़ा होता देखने के लिए..
काश आज तुम अपने हाथो से
उसे टाई बाँधकर उसे बड़ा होने का
अहसास कराते...
             संतु
                 

महिला दिवस....

महिला दिवस
आज खूब कशीदे कढ़े जाएंगे
महिलाओ के त्याग, तपस्या, सहनशीलता पर
भावनाओ का बाजार गर्म रहेगा...
पर क्या सच में ममत्तव पर
अधिकार केवल नारी का ही है?
इतिहास साक्षी रहा है
अपवाद जीवन के हर क्षेत्र में  है
जरुरी नहीं हर नारी में नारीत्व हो
जरुरी नहीं हर पुरुष में पुरुषत्व हो
बात तो सिर्फ अहसासों की है
बात तो सिर्फ सार्थकता की है
बात तो सिर्फ मानवीयता की है
तो फिर नारी को ही
विज्ञापितता की आवश्यकता क्यों?
धन्य हूँ ऎसे नर की नारी हूँ मैं
जिस नर में माँ की ममता
पिता का स्नेह है उसमें
प्रियसी के प्रेम का आलिंगन है
आखिर क्यों न हो
क्योकि सृष्टि के हर कण में
बहता 'पवन' है जो....
      संतोष शर्मा