न कोई रिश्तों को नाम दो
और न ही पालो अहसासों को
ज्यों ही बिखरता है वो रिश्ता
तड़फ उठता है दिल
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।
सब कुछ होते हुए भी
क्यों वह अनजानी सी कमी
खटकती रहती है हर पल
जिसको पाने की मृगतृष्णा में
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।
पर वाह री 'संतु'
तुम भूल रही हो इस बार
जो अहसास जन्म लेते है
उनका चले जाना भी शाश्वत है
और यही है तेरी दुनिया।
संतोष शर्मा 'संतु'
और न ही पालो अहसासों को
ज्यों ही बिखरता है वो रिश्ता
तड़फ उठता है दिल
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।
सब कुछ होते हुए भी
क्यों वह अनजानी सी कमी
खटकती रहती है हर पल
जिसको पाने की मृगतृष्णा में
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।
पर वाह री 'संतु'
तुम भूल रही हो इस बार
जो अहसास जन्म लेते है
उनका चले जाना भी शाश्वत है
और यही है तेरी दुनिया।
संतोष शर्मा 'संतु'