'मित्रता'
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!
जब 'जीवन' सफ़र में
कोई लगे 'अपना-सा'
कि,
जिसकी उपस्थिति मात्र ही
आप को देने लगे 'उर्जा'
कि,
कोई जब आपकी 'धड़कनों' में धड़क कर
आपके 'ह्रदय' के साथ होने लगे 'स्पंदित'
उस 'वक्त' आपका मन कहने लगता हैं
कि,
'मित्रता'
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!
जब 'जीवन' सफ़र में
कोई लगे 'अपना-सा'
कि,
जिसकी उपस्थिति मात्र ही
आप को देने लगे 'उर्जा'
कि,
कोई जब आपकी 'धड़कनों' में धड़क कर
आपके 'ह्रदय' के साथ होने लगे 'स्पंदित'
उस 'वक्त' आपका मन कहने लगता हैं
कि,
'मित्रता'
मात्र 'शब्द' नहीं
'अर्थ' हैं,
और
'अर्थ' भी नहीं 'भावार्थ' हैं...!!
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