Monday, November 28, 2016

तुम....

ऎसे ही सदियाँ बीत जायेगी
पर तुम यूँ ही
जवानी की दहलीज पर रहोगे
तुम्हारे अपने
बचपन, तरुण और जीवन की
अंतिम संध्या तक होंगे
पर तुम्हारा मुखमंडल हमेशा
तरुणाई के अठखेलियों से
देदीप्तयमान रहेगा।
समय तुम्हारे लिए
रुक चुका है
तुम्हारी उम्र ने तुम्हे
बाँध लिया है
कोई नहीं देख सकता
तुम्हारे चेहरे पड़ती झुर्रियां
क्योकि तुम तो खुद एक
वक्त बन चुके हो।
फिर भी एक इन्तजार है
शायद तुम भी
अपनो के साथ, अपनो की तरह
जीवन की राहों से गुजरोगे
और तुम्हे फिर कोइ वक्त
नहीं बाँध पायेगा....

रिश्ते

न कोई रिश्तों को नाम दो
और न ही पालो अहसासों को
ज्यों ही बिखरता है वो रिश्ता
तड़फ उठता है दिल
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।

सब कुछ होते हुए भी
क्यों वह अनजानी सी कमी
खटकती रहती है हर पल
जिसको पाने की मृगतृष्णा में
बेमानी सी हो जाती है दुनिया।

पर वाह री 'संतु'
तुम भूल रही हो इस बार
जो अहसास जन्म लेते है
उनका चले जाना भी शाश्वत है
और यही है तेरी दुनिया।

संतोष शर्मा 'संतु'