‘आतंक’
‘दहशत’ अहसास है आतंक का
हैवानियत की हदें पार होती है,
मासूमों की हत्याओं से
लक्ष्य पूरे किये जाते हैं.
ऊँची अट्टालिकाओं में होते हैं अपराध
और खून बिखरता है सड़कों पर,
माँ के आँचल से दूर होते लालों से
लक्ष्य पूरे किये जाते हैं.
आतंक के साये से इंसानियत भयभीत है
और पनाह देना किसी को, गुनाह है,
प्रेम और भाईचारे की बलिवेदी पर
लक्ष्य पूरे किये जाते हैं.
क्या ये बम और बन्दूक की गोलियां
अस्तित्व मिटा देगी धरती का
क्या मानवीयता थरथरा उठेगी?
और आतंक का लक्ष्य पूर्ण होगा?
नहीं कमजोर नहीं है मानव,
“जैसे को तैसे की भावना” से विनाश का
अहसास है उसे,
जब तक मानव है, मानवीयता भी रहेगी
अभी भी रक्त के लाल होने का
अहसास है उसे.
संतोष शर्मा,
(अहमदाबाद में बलास्ट के दिन रचित)
बहुत बढ़िया और सराहनीय लिखी हैं आप..
ReplyDeleteकाश ऐसा सभी सोचने लगे तो ये सब हो ही ना..