सुना है आज महिला दिवस है,
महिलाओं को जागरुक होने का दिन है
परंतु महिला तो एक अबुझ पहेली है
हर दिवस उसका एक समर्पित दिन है.
किसने जाना है नारी के रूप को,
वह तो ईश्वर की एक अनुपम कृति है
इस जग की निर्मात्री है वो
वह तो स्वयं में एक प्रकृति है.
वह तो स्वयं में एक प्रकृति है.
उसकी विभिन्नता की मिसाल कहाँ,
इस जग में है उसके रूप अनेक,
जहाँ वह देवी है, वहाँ चण्डिका भी,
बदल सकती है वह रूप प्रत्येक.
सदियों से हर दिवस उसके पास आया है
हर दिवस को उसने समझा है
हर दुर्बलताओं का प्रत्युतर उसने दिया
जिसने भी गलत उसको समझा है
संतोष शर्मा “संतु”
No comments:
Post a Comment