Saturday, December 11, 2010

आशा –निराशा


कभी कभी मैं सोचती हूँ,
ये आशा और निराशा किस चिडिया का नाम है,
जहाँ एक तमन्नाएँ लेकत उडती है,
तो दूसरी गर्त के किले की ओर.
कभी-कभी मैं सोचती हूँ
इन चिडियों को कैद कर लूँ,
बन्धन में बाँध लूँ, इस आशा और निराशा को,
और पंख काट डालूं इन दोनों के.
फिर कभी-कभी मैं सोचती हूँ
क्या गलती है इन दोनों की
दोनों का ही है यह मुक्त गगन,
क्यों न मैं ही उड चलूँ इन दोनों के संग.
फिर मैं स्वयं को समझाती हूँ,
अगर ना होती यें दोनों चिडिया,
इंसानियत की उडान भराता कौन
इंसान होने का महत्व समझाता कौन,

संतोष शर्मा संतु


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