Thursday, December 30, 2010

आँखो का पानी

दर्पण की आँखो का पानी भी रीत गया
इस दर्द की बस्ती में क्या खो कर पाया
जैसे हम आये थे वैसे ही जाना है
विश्वास थके, हारे, कालापन जीत गया.
      भूला बिसराया सा, पथ में खोया, छूटा
      जुडने को टूटा था, जुड कर ही मन टूटा
      जैसे तो अधरों से मनचाहा गीत गाया
      जितना जो समय मिला यों ही बीत गया.
हम भूल गये जिसको, वह अनबोला क्षण था
आलिंगन के क्षण में उन बाहों का ऋण था
भीतर जो बजता था मधुरिम संगीत गया
दर्पण की आँखो का पानी भी रीत गया.

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