Friday, December 24, 2010

भावनाएँ

इंसान मजबूर है भावनाओं में बहने के लिये,
क्यों वह उदास है कुछ पलों के लिये.

क्यों कभी कुछ कमी खटकती है, बेवजह,
उस रिक्तता के अहसास की, क्या है वजह.

जरुरी तो नही उसको सम्पूर्णता ही मिले,
ऐसा भी हो सकता है, उसे अपूर्णता ही मिले.

पर उस अपूर्णता की कुछ तो है वजह,
हो सकता है सम्पूर्णता ही है वो वजह.

होते हैं उपेक्षित भी तो दिन में सितारे,
पर अंधेरा होने पर खिल उठते है ये सितारे.

क्या फूल हँसना छोद दें मुरझाने के डर से?
क्या फूल खिलना बंद कर दे टूट जाने के डर से?

खिल उठेगें सितारे, अंधेरा होने पर
इंसान भी खिल उठेगा, अवसर आने पर.

                   संतोष शर्मा संतु

2 comments:

  1. एक पुरानी कविता याद आ रही है इसे पढ़ कर.. "नर हो ना निराश करो मन को.. कुछ काम करो, कुछ काम करो.."

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  2. Jivan ke utar chadhavo ko darsati ye kavita...vese bhi insan ko jivan me ane vale kathin samay ko bhi dil se jina chahiye.. tabhi to apki antim line satik bethti hai...INSAAN BHI KHIL UTHEGA AVASAR ANE PAR...kammal ki sabd rachana hai...bahut khub

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